Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८२ ]
[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
वचन ते हेतु छे; जेम के‘आ पर्वतमां धूमाडो जणाय छे माटे
आ पर्वत अग्निवाळो छे.’ वळी अल्पज्ञानवाळाने बे अंग तो
ए तथा उदाहरण, उपनय अने निगमन एमांथी एक, बे वा
त्रण शिष्यना अनुरोधथी कहेवां, त्यां जे साध्यने पोते साधन
आपी साचो निर्णय इच्छे तेनां द्रष्टांतनां वचन कहेवां (ए)
अन्वय वा व्यतिरेकरूप बे उदाहरण छे. जेम केपर्वतने
अग्निवाळो सिद्ध करवा माटे अग्निसहित धूमाडावाळा
रसोईनां घरनां द्रष्टांतनुं वचन कहेवुं. वळी द्रष्टांतनी
अपेक्षापूर्वक साध्यनुं वचन कहेवुं ते उपनय छे. जेम के
रसोई धूमाडावाळी छे तेवो पर्वत पण धूम्रवान छे. तथा
हेतुना आश्रये साध्यना निश्चयनुं वचन कहेवुं ते निगमन छे,
जेम के
आ पर्वत धूम्रवान छे माटे अग्निमान छे ज, ए
प्रमाणे हेतुपूर्वक निश्चयवचन कहेवुं ते निगमन छे. ए प्रमाणे
तमने अनुमाननुं स्वरूप वा भेद कह्या तेने जाणी तमारा
ज्ञानने अनुमानरूप प्रमाण बनावो.
१. अन्वयद्रष्टांत = जे द्रष्टांतथी साधननी हैयातिथी साध्यनी हैयाति
बतावाय, तेने अन्वयद्रष्टांत कहे छे. दा.त. ज्यां ज्यां धूमाडो
छे त्यां त्यां अग्नि छे, जेम के
रसोडुं.
२. व्यतिरेक द्रष्टांत = जे द्रष्टांतथी साध्यना न होवापणाथी साधननुं
न होवापणुं बतावाय तेने व्यतिरेक द्रष्टांत कहे छे. दा.त. ज्यां
ज्यां अग्नि न होय त्यां त्यां धूमाडो न होय, जेम के
तळाव.
अहीं रसोडुं ते अन्वयनो दाखलो छे ने तळाव ते व्यतिरेकनो
दाखलो छे.