सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ८३
हवे, अमने सर्वज्ञनी सत्तानो निश्चय जेवी रीते थयो छे
ते स्वरूप तमने कहीए छीए, ते तमे रुचिपूर्वक सांभळो! ते
निश्चय करवानो मार्ग आ छे – न्यायशास्त्रमां कह्युं छे के – उद्देश,
लक्षणनिर्देश अने परीक्षा ए प्रमाणे वस्तुनो निर्णय अनुक्रमथी
त्रण प्रकारथी करे छे. त्यां वस्तनुं नाममात्र कहेवुं ते उद्देश छे
ते तो प्रथम कहेवो जोईए, कारण के – नाम कह्या विना कोनुं
लक्षण कही शकाय? माटे पहेलां नाम ज कहेवा – शीखवा योग्य
छे; पछी अव्याप्ति, अतिव्याप्ति अने असंभव ए त्रण दोष
रहित लक्षण के जेनाथी वस्तुनुं स्वरूप जुदुं भासी जाय, तेने
कहेवुं वा जाणवुं. कारण के – लक्षण कह्या वा जाण्या विना परीक्षा
शा वडे कराय? माटे नाम पछी लक्षण कहेवा वा जाणवा योग्य
छे, त्यार पछी लक्षणनो आश्रय लईने परीक्षा करवी योग्य छे,
त्यां वादी – प्रतिवादी नाना प्रकारनी विरुद्ध युक्ति कहे तेना
प्रबल वा शिथिलपणानो निश्चय करवा अर्थे प्रवर्तेलो जे विचार
ते परीक्षा छे. कारण के – ए प्रमाणे परीक्षा विना वस्तुनुं साचुं
स्वरूप जाणवुं वा यथार्थ त्याग – ग्रहण थतुं नथी. लौकिकमां वा
शास्त्रमां एवी ज वस्तुना विवेचननी मर्यादा छे. हवे तमारे
सर्वज्ञनी सत्ता-असत्तानो निश्चय करवानुं आव्युं, त्यां प्रथम तो
नाम जाणो, पछी अनेक मतोना आश्रये लक्षणादिक करो. पछी
सर्व मतोमां कहेलां जे लक्षण तेनो परस्पर निर्णय करो ते पछी
तमने प्रबलरूपथी जे साचुं भासे ते उपर पाको निश्चय लाववा
योग्य छे, आ मार्ग छे. जो कोई कहे के – ‘सर्वज्ञ नथी’ तो तेना
कथनने तो पहेलां ज ज्ञापकानुं पलंभहेतुने तो असत्य दर्शाव्यो