Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ८५
अर्थःजेनी संज्ञारूप प्रतिषेधनी वाक्यरूप संज्ञा
कहेवामां आवे ते वाक्य कथंचित् सद्भावरूप जे संज्ञानो स्वामी
प्रतिषेध्यपदार्थ, तेना आश्रय विना प्रवर्ते नहि. तेथी जे वस्तु
कथंचित् अस्तिरूप हशे तेनी ज नास्तिनी कथनी कथंचित्
संभवशे पण सर्वथा अभावरूपनी संज्ञा लईने (वळी) तेनी
नास्तिनी कथनी सर्वथा ज बनती नथी. तमे सर्वज्ञनुं नाम
लईने (वळी पाछा तेनी) नास्ति कही, पण ‘सर्वज्ञ’ एवी नाम
संज्ञा तो सर्वज्ञनी कथंचित् अस्तिताने जणावे छे; माटे अमे
तो तमारी पासे सर्वज्ञनुं अस्तित्व सिद्ध करीए छीए, के तमे
सर्वज्ञनुं नाम लईने नास्ति कहो छो पण तेमां तो आम आव्युं
के
सर्वज्ञनो सद्भाव कोई प्रकारथी छे ज अने त्यारे तो
सर्वज्ञनी संज्ञा बने छे. ए प्रमाणे संज्ञाना स्वामीनो प्रतिषेध
ज पोतानी प्रतिषेध्यवस्तुनी सिद्धि करे छे.
वळी तमे कहेशो के‘अमे तो सर्वज्ञथी नास्तिनुं वचन
कह्युं छे ते तो आस्तिक्यवादी सर्वज्ञनी अस्ति माने छे, तेना
अभिप्रायने खंडन करवा माटे कह्युं छे.’ तेने अमे कहीए
छीए के
‘सर्वज्ञ नथी’ एवुं बाधासहित वचन तो कहेवुं
नहोतुं, अगर कहेवुं हतुं तो सर्वज्ञवादी एवुं माने छे पण
तेनुं श्रद्धान जुठुं छे’ ए प्रकारथी कहेवुं हतुं, एटले तेने तो
परस्पर वाद द्वारा निर्णय थई जाय, परंतु तमारे आवी
१. प्रतिषेध = निषेध.
२. प्रतिषेध्य = निषेधवा योग्य.