Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
असंभवति वात वगर विचार्ये कहेवी योग्य नहोती के ‘सर्वज्ञ
ज नथी.’ ए तो तमे जूठा मतपक्ष वडे ज वचन कह्युं छे,
परंतु आस्तिक्यवादी तो तमारो नास्तिरूप वचनने ज
साधनरूप बनावी सर्वज्ञना अस्तित्वनी पुष्टि करे छे. ए
प्रमाणे तमारा वचनथी ज पोतानी (अमारी) रकम जे
सर्वज्ञनी अस्ति, तेनी सिद्धि करी.
तथा अमे जे साधन द्वारा अनुमान वडे सर्वज्ञनी सत्ता
जाणी छे ते तमने दर्शावीए छीएअहीं चार प्रकारना
अनुमानथी सर्वज्ञनी सत्तानो निश्चय थवो दर्शावीशुं. एक तो
एकदेश आवरणनी हानिने साधन करवी, बीजुंथोडा घणा
ज्ञेयनुं पण प्रत्यक्ष छे तेने साधन करवुं, त्रीजुंसूक्ष्म आदि
पदार्थोने साधन करवां, चोथुंसूक्ष्मआदि पदार्थरूपे जे
उपदेशवाक्यो छे तेने साधन करवा; ए प्रमाणे चार प्रकारनां
साधन छे. हवे तेनुं विशेष (वर्णन) वा ए साधनोना
आश्रयथी केवी रीते सर्वज्ञनुं अनुमान करीए छीए, ते अहीं
लखीए छीएः
त्यां दोष अने आवरणनी हानि कोई जीवने संपूर्ण थई
छे, कारण केसंसारमां ज्ञाननी विशेषता तथा कषायनी मंदता
उत्तरोत्तर वधती वधती जोवामां आवे छे, तेनाथी आ
सर्वज्ञतानी सिद्धि करी. जेम गोळथी
*सक्कर वधारे मीठी छे,
सक्करथी खांड, खांडथी बूरू अने बूराथी मिश्री (पत्रीसाकर)
* सक्कर शेरडीमांथी परबारी संयुक्तप्रांतमां काढवामां आवे छे.