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२. जर = जरा.
३. कर्मविनाशकरणनिमित्त = कर्मनो क्षय करवानुं निमित्त.
४. स्वरग-शिवसौख्य = स्वर्ग अने मोक्षनां सुख.
५. सागार-अणगारत्व = श्रावकपणुं अने मुनिपणुं.
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२. मलिनित = मलिन.
५. दिवशिवसौख्यभाजन = स्वर्ग अने मोक्षनां सुखनुं भाजन.
६. करममळमलिनमन = कर्ममळथी मलिन मनवाळो.
७. अमर = देव.
८. संस्तुत = जेनी सारी रीते प्रशंसा करवामां आवे छे एवी.
९. करांजलिपंक्ति = हाथनी अंजलिनी (अर्थात् जोडेला बे हाथनी) हारमाळा.
१०. चक्री-विशाळविभूति = चक्रवर्तीनी घणी मोटी ॠद्धि.
११. सुभावथी = सारा भावथी.
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२. गलितमानकषाय = जेनो मानकषाय नष्ट थयो छे एवो.
३. समचित्त = जेनुं चित्त समभाववाळुं छे एवो.
४. त्रिभुवनसार = त्रण लोकमां सारभूत.
५. अचिर काळे = अल्प काळे.
६. त्रणविधे = त्रण प्रकारे अर्थात् मन-वचन-कायाथी.
७. मन-गज मत्तने = मनरूपी मदमाता हाथीने.
८. भूशयन = भूमि पर सूवुं ते.
९. पंचविध-पटत्याग = पांच प्रकारनां वस्त्रोनो त्याग.
१०. छे भाव भावितपूर्व = ज्यां भाव (शुद्ध भाव) पूर्वे भाववामां आव्यो
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२. गोशीर्ष = बावनाचंदन.
३. भाविभवमथन = भावी भवोने हणनार.
४. भवतरणकारण = संसारने तरी जवाना कारणभूत.
५. मनमर्कट = मनरूपी मांकडुं; मनरूपी वांदरुं.
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३. मिथुनसंज्ञासक्त = मैथुनसंज्ञामां आसक्त.
४. भीम भवार्णव = भयंकर संसारसमुद्र.
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२. दशभेद = दशविध.
३. कर्ममळलयहेतुए = कर्ममळनो नाश करवा माटे.
४. परिमंडित क्षमाथी = क्षमाथी सर्वतः शोभित.
५. त्रणविधेे = त्रण प्रकारे अर्थात् मन-वचन-कायाथी.
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५. बहिःशयन = शीतकाळे बहार सूवुं ते.
६. तुर्य = चतुर्थ.
१०. चिंतनीय = चिंतववायोग्य.
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२. अशुभलेश्यान्वित = अशुभ लेश्यायुक्त; अशुभ लेश्यावाळा.
३. वेष्टित = घेरायेलो; आच्छादित; रुकावट पामेलो.
४. अमित = अनंत. ५. निरर्थ = निरर्थक; जेनाथी कोई अर्थ सरे नहि एवा.
६. कुठार = कुहाडो.
९. अमर-नर-खचरपूजित = देवो, मनुष्यो अने विद्याधरोथी पूजित.
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२. भवि = भव्य जीवो.
३. जर-मरण-व्याधिदाहवर्जित = जरा-मरण-रोगसंबंधी बळतराथी मुक्त.
४. शिवमयी = आत्यंतिक सौख्यमय अर्थात् सिद्ध.
५. तीर्थेश-गणनाथादिगत = तीर्थंकर-गणधरादिसंबंधी.
६. त्रिधा = त्रण प्रकारे अर्थात् मन-वचन-कायाथी.
७ . भावयुत = शुद्ध भाव सहित.
८. खेचर-सुरादिक = विद्याधर, देव वगेरे.
९. जुए = देखे, श्रद्धे.
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२. गदाग्नि = रोगरूपी अग्नि.
११. दुर्बुद्धि-दुर्मतदोषथी = दुर्बुद्धिने लीधे तथा कुमत-अनुरूप दोषोने लीधे.
१२. मिथ्यात्वआवृतद्रग = मिथ्यात्वथी आच्छादित द्रष्टिवाळो.
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४. चल शब = हालतुं-चालतुं मडदुं.
५. मृगराज = सिंह.
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२. द्रगज्ञानआवृति = दर्शनावरण ने ज्ञानावरण.
३. प्राकट्य = प्रगटपणुं.
४. त्रिभुवनभवनना दीप = त्रण लोकरूपी घरना दीपक अर्थात् दीवारूप.
५. वर = उत्तम.
६. खणे = खोदे छे.
७. सलिल = पाणी.
८. मलिनमन = मलिन चित्तवाळो.
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२. सुभट = योद्धा.
३. दर्शनज्ञान-उत्तमकर = दर्शन अने ज्ञानरूप (बे) उत्तम हाथ.
४. विषयमकराकर = विषयोरूपी समुद्र (मगरोनुं स्थान).
५. भवि = भव्य.
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४. परम-अंतर-बहिर त्रणधा = परमात्मा, अंतरात्मा अने बहिरात्मा
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२. अंतरात्मारूढ = अंतरात्मामां आरूढ; अंतरात्मारूपे परिणत.
३. ध्यातव्य = ध्यावायोग्य; ध्यान करवा योग्य.
४. बाह्यार्थ = बहारना पदार्थो.
५. स्फु रितमन = स्फु रायमान (तत्पर) मनवाळो.
६. स्वभ्रष्ट इन्द्रियद्वारथी = इन्द्रियो द्वारा आत्मस्वरूपथी च्युत.
७. अध्यवसित करे = माने.
८. जीव मूढधी = मूढ बुद्धिवाळो जीव; मूढबुद्धि (अर्थात् बहिरात्मा) जीव.
९. ते = परनो देह.
१२. फरीनेय = आगामी भवमां पण.
१३. मुक्तारंभ = निरारंभ; आरंभ रहित.
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२. दुष्टाष्ट कर्मो = दुष्ट आठ कर्मोने; खराब एवां आठ कर्मोने.
३. आत्मस्वभावेतर = आत्मस्वभावथी अन्य.
४. अवितथपणे = सत्यपणे; यथार्थपणे.
५. ज्ञानविग्रह = ज्ञानरूप शरीरवाळो.
६. संलग्न = लागेल; वळगेल; जोडायेल.
७. सुरलोक = देवलोक; स्वर्ग.
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ज्यम शुद्धता पामे सुवर्ण
२. अजेय = न जीती शकाय एवो.
६. प्रतीक्षाकरणमां = राह जोवामां.
७. संसार-अर्णव रुद्रथी = भयंकर संसारसमुद्रथी.
८. निःसरण = बहार नीकळवुं ते.
९. करम-इन्धन तणा दहनार = कर्मरूपी इंधणांने बाळी नाखनार.
१०. मोहरागविरोध = मोहरागद्वेष.
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४.
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२. सद्ज्ञान = सम्यग्ज्ञान.
३. द्रगशुद्ध = दर्शनशुद्ध; सम्यग्दर्शनथी शुद्ध.
४. जरमरणहर = जरा अने मरणनो नाशक.
५. तथ्यथी = सत्यपणे; अवितथपणे.
६. अविकल्प = निर्विकल्प; विकल्प रहित.
७. निजशक्तितः = पोतानी शक्ति प्रमाणे.
८. उत्कृष्ट पद = परम पद (अर्थात् मुक्ति).
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२. धरी त्रण = त्रणने धारण करीने (अर्थात् वर्षाकाळयोग, शीतकाळयोग तथा
४. त्रिकयुतपणे = त्रणथी संयुक्तपणे (अर्थात् रत्नत्रयथी सहितपणे).
५. दोषयुगलविमुक्त = बे दोषोथी रहित (अर्थात् राग-द्वेषथी रहित).
६. परमात्मभावनहीन = परमात्मभावना रहित; निज परमात्मतत्त्वनी
९. ते = निज समभाव.