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२. सम्यक्त्वना वहनार = सम्यक्त्वने धारी राखनार; सम्यक्त्वपरिणतिए
४. त्रिगुप्तिक = त्रण-गुप्तिवंत.
५. शुभ अन्य द्रव्ये = (शुभ भावना निमित्तभूत) प्रशस्त परद्रव्यो प्रत्ये.
६. रुचिभाव = ‘आ सारुं छे, हितकर छे’ एम एकाकारपणे प्रीतिभाव.
७. अज्ञ = अज्ञानी.
८. कर्मजमतिक = कर्मथी उत्पन्न थयेली बुद्धिवाळा; कर्मनिमित्तक वैभाविक
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२. अन्य कार्यो = बीजी (आवश्यकादि) क्रियाओ.
३. भावहीन = शुद्धभाव रहित.
६. अकृतार्थ = प्रयोजन सिद्ध न करे एवुं; असफळ.
७. ध्रुवसिद्धि = जेमनी सिद्धि (ते ज भवे) निश्चित छे एवा.
८. ज्ञानचतुष्कयुत = चार ज्ञान सहित.
११. सुखसंग = सुख सहित; शाताना योगमां.
१२. भावित = भाववामां आवेलुं.
१३. दुखकाळमां = उपसर्गादि दुःख आवी पडतां.
१४. यथाबळ = शक्ति प्रमाणे.
१५. दुःख सह = कायक्लेशादि सहित.
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२. श्रीगुरुपरसादथी = गुरुप्रसादथी; गुरुकृपाथी.
३. भावना = आत्माने भाववो ते; आत्मस्वभावनुं भावन करवुं ते.
४. भावितनिजात्मस्वभावने = जेणे निजात्मभावने भाव्यो छे ते जीवने; जेणे
७. भावनयुक्त = आत्मभावनाथी युक्त.
८. निःशंक = चोक्कस; खातरीथी.
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२. द्रढचारित्र = द्रढ चारित्रयुक्त.
३. समता = समभाव; साम्यपरिणाम.
४. आवृतचरण = जेमनुं चारित्र अवरायेलुं छे एवा.
५. जल्पे = बकवाद करे छे; बबडे छे; कहे छे.
६. शिवपरिमुक्त = मोक्षथी सर्वतः रहित.
७. सुरत भवसुखमां = संसारसुखमां सारी रीते रत (अर्थात् संसारसुखमां
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२. पापमोहितबुद्धिओ = जेमनी बुद्धि पापमोहित छे एवा जीवो.
३. त्यक्त = तजायेला; अस्वीकृत; नहि स्वीकारायेला.
४. पंचवस्त्रासक्त = पंचविध वस्त्रोमां आसक्त (अर्थात् रेशमी; सुतराउ वगेरे
८. गृहीत = ग्रहवामां आवेला; स्वीकारवामां आवेला; स्वीकृत; अंगीकृत.
९. निर्वेदश्रेणी = वैराग्यनी परंपरा; वैराग्यभावनाओनी हारमाळा.
१०. सुचरित्र = सारा चारित्रवाळा; सत्चारित्रयुक्त.
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२. पुरुषाकार = पुरुषना आकारे.
३. वरज्ञानदर्शनपूर्ण = (स्वभावे) उत्तम ज्ञानदर्शनथी परिपूर्ण.
४. ध्यानार = एवा जीवने
६. शिव करनार = मोक्षनुं करनारुं; सिद्धिकर.
७. नरवरो = उत्तम पुरुषो.
८. गत काळ = भूतकाळमां; पूर्वे.
९. सिद्ध्या = सिद्ध थया; मोक्ष पाम्या.
१०. सुकृतार्थ = जेमणे प्रयोजनने सारी रीते सिद्ध कर्युं छे एवा; सुकृतकृत्य.
११. सिद्धिकर = सिद्धि करनार; मोक्ष करनार.
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२. लिंग परनिरपेक्षने = परथी निरपेक्ष एवा (अंतर्बाह्य) लिंगने; परने नहि
५. कुत्सित = निंदित; खराब; अधम.
६. रक्त = रागी.
७. सपरापेक्ष = परनी अपेक्षावाळा.
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४. आदेयहेय-सुनिश्चयी = उपादेय अने हेयनो जेमणे निश्चय करेलो छे एवा.
५. गुणगण विभूषित-अंग = गुणोना समूहथी सुशोभित अंगवाळा.
६. प्रणत जन = बीजाओ वडे जेमने प्रणमवामां आवे छे ते जनो.
७. ध्यात जन = बीजाओ वडे जेमने ध्यावामां आवे छे ते जनो.
८. तनस्थ = देहस्थ; शरीरमां रहेल.
९. स्तवनप्राप्त जनो = बीजाओ वडे जेमने स्तववामां आवे छे ते जनो.
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२. लिंगित्वने उपहसित करतो = लिंगीपणानो उपहास करे छे; लिंगीभावनी
४. लिंगीओ = मुनिओ; साधुओ; श्रमणो.
५. बहुश्रमपूर्व = बहु श्रमपूर्वक; घणा प्रयत्नथी.
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२. संसृतिकानने = संसाररूपी वनमां.
३. पिंडार्थ = आहार अर्थे; भोजनप्राप्ति माटे.
४. अणदत्त = अदत्त; अणदीधेल; नहि देवामां आवेल.
५. असमक्ष = परोक्षपणे; अप्रत्यक्षपणे; असमीपपणे; छानी रीते.
६. लिंगात्म = लिंगरूप; मुनिलिंगस्वरूप.
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२. भावविनष्ट = भावभ्रष्ट; भावशून्य; शुद्धभावथी (दर्शनज्ञानचारित्रथी)
५. करे स्तुति नित्य = हंमेशा तेनी प्रशंसा करे छे.
६. पिंड = शरीर.
७. कष्ट सह = कष्ट सहित; प्रयत्नपूर्वक.
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२. रक्तकजकोमल-सुपद = लाल कमळ जेवां कोमळ जेमनां सुपद (सुंदर चरणो
४.
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२. परिनिर्वाण = मोक्ष.
३. विरक्तमन = विरक्त मनवाळा.
४. इष्टदर्शी = इष्टने देखनार; हितने श्रद्धनार; सन्मार्गनी श्रद्धावाळा.
५. दुर्मत = कुमत.
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२. रूपविरूप = रूपे विरूप; रूप-अपेक्षाए कुरूप.
३. मानुष्य = मनुष्यपणुं (अर्थात् मनुष्यजीवन).
४. सुजीवित = सारी रीते जिवायेलुं; प्रशंसनीयपणे
७. विषयलुब्ध तणुं विघातक = विषयलुब्ध जीवोनो घात करनारुं (अर्थात् तेमनुं
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४. तुर्यने = चतुर्थने (अर्थात् मोक्षरूप चोथा पुरुषार्थने).
५. विषयविलुब्ध = विषयलुब्ध; विषयोना लोलुप.
६. विषये विरक्त = विषयविरक्त जीवो.
७. सुसह = सहेलाईथी सहन थाय एवी (अर्थात् हळवी).
८. अत्यक्ष = अतींद्रिय; इंद्रियातीत.
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८. शीलसलिल = शीलरूपी जळ.
९. आराधनापरिणत = आराधनारूपे परिणमेला पुरुषो.
१०. कृश = नबळां; पातळां; क्षीण.
११. मनशुद्ध = शुद्ध मनवाळा (अर्थात् शुद्ध परिणतिवाळा).
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२. सुर = देव.
५. रमा = स्त्री. ६. आत्म-अज्ञ = आत्माने नहि जाणनार.
७. आतम-अध्यवसाय = आत्मानी मान्यता. ८. दारा = स्त्री.
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३. उन्मत्तता = उन्मादपणुं.
५. स्थाणु = झाडनुं ठूंठुं.
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