Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 88 of 214
PDF/HTML Page 100 of 226

 

background image
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जीवने न स्थान स्वभावनां, मानापमान तणां नहीं,
जीवने न स्थानो हर्षनां, स्थानो अहर्ष तणां नहीं. ३९.
स्थितिबंधस्थानो, प्रकृतिस्थान, प्रदेशनां स्थानो नहीं,
अनुभागनां नहि स्थान जीवने, उदयनां स्थानो नहीं. ४०.
स्थानो न क्षायिकभावनां, क्षायोपशमिक तणां नहीं,
स्थानो न उपशमभावनां के उदयभाव तणां नहीं. ४१.
चउगतिभ्रमण नहि, जन्म-मरण न, रोग

शोक

जरा नहीं,
कुळ, योनि के जीवस्थान, मार्गणस्थान जीवने छे नहीं. ४२.
निर्दंड ने निर्द्वंद्व, निर्मम, निःशरीर, नीराग छे,
निर्दोष, निर्भय, निरवलंबन, आतमा निर्मूढ छे. ४३.
निर्गं्रथ छे, निष्काम छे, निःक्रोध, जीव निर्मान छे,
निःशल्य तेम नीराग, निर्मद, सर्वदोषविमुक्त छे. ४४.
स्त्री-पुरुष आदिक पर्ययो, रसवर्णगंधस्पर्श ने
संस्थान तेम ज संहनन सौ छे नहीं जीवद्रव्यने. ४५.
जीव चेतनागुण, अरसरूप, अगंधशब्द, अव्यक्त छे,
वळी लिंगग्रहणविहीन छे, संस्थान भाख्युं न तेहने. ४६.
जेवा जीवो छे सिद्धिगत तेवा जीवो संसारी छे,
जेथी जनममरणादिहीन ने अष्टगुणसंयुक्त छे. ४७.
अशरीर ने अविनाश छे, निर्मळ, अतीन्द्रिय, शुद्ध छे,
ज्यम लोक-अग्रे सिद्ध, ते रीत जाण सौ संसारीने. ४८.
आ सर्व भाव कहेल छे व्यवहारनयना आश्रये;
संसारी जीव समस्त सिद्धस्वभावी शुद्धनयाश्रये. ४९.
८८ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय