Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 3. shuddhbhav adhikAr.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
परमाणुने ‘पुद्गलदरव’ व्यपदेश छे निश्चय थकी;
ने स्कंधने ‘पुद्गलदरव’ व्यपदेश छे व्यवहारथी. २९.
जीव-पुद्गलोने गमन-स्थाननिमित्त धर्म-अधर्म छे;
जीवादि सर्व पदार्थने अवगाहहेतु आभ छे. ३०.
आवलि-समयना भेदथी बे भेद वा त्रण भेद छे;
संस्थानथी संख्यातगुण आवलिप्रमाण अतीत छे. ३१.
जीवोथी ने पुद्गलथी पण समयो अनंतगुणा कह्या;
ते काळ छे परमार्थ, जे छे स्थित लोकाकाशमां. ३२.
जीवपुद्गलादि पदार्थने परिणमनकारण काळ छे;
धर्मादि चार स्वभावगुणपर्यायवंत पदार्थ छे. ३३.
जिनसमयमांही काळ छोडी शेष पांच पदार्थ जे,
ते अस्तिकाय कह्या; अनेकप्रदेशयुत ते काय छे. ३४.
अणसंख्य, संख्य, अनंत होय प्रदेश मूर्तिक द्रव्यने,
अणसंख्य जाण प्रदेश धर्म, अधर्म तेम ज जीवने; ३५.
अणसंख्य लोकाकाशमांही, अनंत जाण अलोकने,
छे काळ एकप्रदेशी, तेथी न काळने कायत्व छे. ३६.
छे मूर्त पुद्गलद्रव्य, शेष पदार्थ मूर्तिविहीन छे;
चैतन्ययुत छे जीव ने चैतन्यवर्जित शेष छे. ३७.
३. शुद्धभाव अधिकार
छे बाह्यतत्त्व जीवादि सर्वे हेय, आत्मा ग्राह्य छे,
जे कर्मथी उत्पन्न गुणपर्यायथी व्यतिरिक्त छे. ३८.
श्री नियमसार-पद्यानुवाद ]
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