Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
परने ज जाणे ज्ञान तो द्रग ज्ञानथी भिन्न ज ठरे,
दर्शन नथी परद्रव्यगतए मान्यता तुज होईने. १६२.
परने ज जाणे जीव तो द्रग जीवथी भिन्न ज ठरे,
दर्शन नथी परद्रव्यगतए मान्यता तुज होईने. १६३.
व्यवहारथी छे परप्रकाशक ज्ञान, तेथी द्रष्टि छे;
व्यवहारथी छे परप्रकाशक जीव, तेथी द्रष्टि छे. १६४.
निश्चयनये छे निजप्रकाशक ज्ञान, तेथी द्रष्टि छे;
निश्चयनये छे निजप्रकाशक जीव, तेथी द्रष्टि छे. १६५.
प्रभु केवळी देखे निजात्माने, न लोकालोकने,
जो कोई भाखे एम तो तेमां कहो शो दोष छे? १६६.
मूर्तिक-अमूर्तिक चेतनाचेतन स्वपर सौ द्रव्यने
जे देखतो तेने अतीन्द्रिय ज्ञान छे, प्रत्यक्ष छे. १६७.
विधविध गुणो ने पर्ययो संयुक्त द्रव्य समस्तने
देखे न जे सम्यक् प्रकार, परोक्ष द्रष्टि तेहने. १६८.
प्रभु केवळी जाणे त्रिलोक-अलोकने, नहि आत्मने,
जो कोई भाखे एम तो तेमां कहो शो दोष छे? १६९.
छे ज्ञान जीवस्वरूप, तेथी जीव जाणे जीवने;
जीवने न जाणे ज्ञान तो ए जीवथी जुदुं ठरे! १७०.
रे! जीव छे ते ज्ञान छे, ने ज्ञान छे ते जीव छे;
ते कारणे निजपरप्रकाशक ज्ञान तेम ज द्रष्टि छे. १७१.
जाणे अने देखे छतां इच्छा न केवळीजिनने;
ने तेथी ‘केवळज्ञानी’ तेम ‘अबंध’ भाख्या तेमने. १७२.
१०० ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय