Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
सम्यक्त्व-दर्शन-ज्ञान-बळ-वीर्ये अहो! वधता रहे
कलिमलरहित जे जीव, ते वरज्ञानने अचिरे लहे. ६.
सम्यक्त्वनीरप्रवाह जेना हृदयमां नित्ये वहे,
तस बद्धकर्मो वालुका-आवरण सम क्षयने लहे. ७.
द्रग्भ्रष्ट, ज्ञाने भ्रष्ट ने चारित्रमां छे भ्रष्ट जे,
ते भ्रष्टथी पण भ्रष्ट छे ने नाश अन्य तणो करे. ८.
जे धर्मशील, संयम-नियम-तप-योग-गुण धरनार छे,
तेनाय भाखी दोष, भ्रष्ट मनुष्य दे भ्रष्टत्वने. ९.
ज्यम मूळनाशे वृक्षना परिवारनी वृद्धि नहीं,
जिनदर्शनात्मक मूळ होय विनष्ट तो सिद्धि नहीं. १०.
ज्यम मूळ द्वारा स्कंध ने शाखादि बहुगुण थाय छे,
त्यम मोक्षपथनुं मूळ जिनदर्शन कह्युं जिनशासने. ११.
द्रग्भ्रष्ट जे निज पाय पाडे द्रष्टिना धरनारने,
ते थाय मूंगा, खंडभाषी, बोधि दुर्लभ तेमने. १२.
वळी जाणीने पण तेमने गारव-शरम-भयथी नमे,
तेनेय बोधि-अभाव छे पापानुमोदन होईने. १३.
ज्यां ज्ञान ने संयम त्रियोगे, उभयपरिग्रहत्याग छे,
जे शुद्ध स्थितिभोजन करे, दर्शन तदाश्रित होय छे. १४.
१. वरज्ञान = उत्कृष्ट ज्ञान अर्थात् केवळज्ञान.
२. वालुका-आवरण = वेळुनुं आवरण; रेतीनी पाळ.
३. खंडभाषी = अस्पष्ट भाषावाळा; तूटक-भाषावाळा.
४. गारव = (रस-ॠद्धि-शाता संबंधी) गर्व; मस्ताई.
५. त्रियोग = (मनवचनकायाना) त्रण योग. ६. शुद्ध स्थितिभोजन = त्रण
करणथी शुद्ध (कृत-कारित-अनुमोदन विनानुं) एवुं ऊभां ऊभां भोजन.
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