श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
बीजु कह्युं छे लिंग उत्तम श्रावकोनुं शासने;
ते १वाक्समिति वा मौनयुक्त सपात्र भिक्षाटन करे. २१.
छे लिंग एक स्त्रीओ तणुं, २एकाशनी ते होय छे;
आर्याय एक धरे ३वसन, वस्त्रावृता भोजन करे. २२.
नहि वस्त्रधर सिद्धि लहे, ते होय तीर्थंकर भले;
बस नग्न मुक्तिमार्ग छे, बाकी बधा उन्मार्ग छे. २३.
स्त्रीने स्तनोनी पास, कक्षे, योनिमां, नाभि विषे,
बहु सूक्ष्म जीव कहेल छे; क्यम होय दीक्षा तेमने? २४.
जो होय दर्शनशुद्ध तो तेनेय ४मार्गयुता कही;
छो चरण घोर चरे छतां स्त्रीने नथी दीक्षा कही. २५.
मनशुद्धि पूरी न नारीने, परिणाम शिथिल स्वभावथी,
वळी होय मासिक धर्म, स्त्रीने ध्यान नहि निःशंकथी. २६.
५पटशुद्धिमात्र समुद्रजलवत् ग्राह्य पण अल्प ज ग्रहे,
इच्छा निवर्ती जेमने, दुख सौ निवर्त्यां तेमने. २७.
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१.वाक्समिति = वचनसमिति.
२.एकाशनी = एक वखत भोजन करनार.
३.वसन = वस्त्र.
४.मार्गयुता = मार्गथी संयुक्त.
५.पटशुद्धिमात्र = वस्त्र धोवा पूरतुं थोडुं ज.
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