Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 3. chAritra prAbhrut.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
३. चारित्रप्राभृत
सर्वज्ञ छे, परमेष्ठी छे, निर्मोह ने वीतराग छे,
ते त्रिजगवंदित, भव्यपूजित अर्हतोने वंदीने; १.
भाखीश हुं चारित्रप्राभृत मोक्षने आराधवा,
जे हेतु छे सुज्ञान-द्रग-चारित्र केरी शुद्धिमां. २.
जे जाणतुं ते ज्ञान, देखे तेह दर्शन उक्त छे;
ने ज्ञान-दर्शनना समायोगे सुचारित होय छे. ३.
आ भाव त्रण आत्मा तणा अविनाश तेम अमेय छे;
ए भावत्रयनी शुद्धि अर्थे द्विविध चरण जिनोक्त छे. ४.
सम्यक्त्वचरणं छे प्रथम, जिनज्ञानदर्शनशुद्ध जे,
बीजुं चरित संयमचरण, जिनज्ञानभाषित तेय छे. ५.
ईम जाणीने छोडो त्रिविध योगे सकळ शंकादिने,
मिथ्यात्वमय दोषो तथा सम्यक्त्वमळ जिन-उक्तने. ६.
निःशंकता, निःकांक्ष, निर्विचिकित्स, अविमूढत्व ने
उपगूहन, थिति, वात्सल्यभाव, प्रभावनागुण अष्ट छे. ७.
ते अष्टगुणसुविशुद्ध जिनसम्यक्त्वनेशिवहेतुने
आचरवुं ज्ञान समेत, ते सम्यक्त्वचरण चरित्र छे. ८.
सम्यक्त्वचरणविशुद्ध ने निष्पन्नसंयमचरण जो,
निर्वाणने अचिरे वरे अविमूढद्रष्टि ज्ञानीओ. ९.
१. सुचारित्र = सम्यक्चारित्र.२.अमेय = अमाप.
३. अष्टगुणसुविशुद्ध = आठ गुणोथी निर्मळ.
४. शिवहेतु = मोक्षनुं कारण.
अष्टप्राभृत-चारित्रप्राभृत ]
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