Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
सम्यक्त्वचरणविहीन छो संयमचरण जन आचरे,
तोपण लहे नहि मुक्तिने अज्ञानज्ञानविमूढ ए. १०.
वात्सल्य-विनय थकी, सुदाने दक्ष अनुकंपा थकी,
वळी मार्गगुणस्तवना थकी, उपगूहन ने स्थितिकरणथी; ११.
आ लक्षणोथी तेम आर्जवभावथी लक्षाय छे,
वणमोह जिनसम्यक्त्वने आराधनारो जीव जे. १२.
अज्ञानमोहपथे कुमतमां भावना, उत्साह ने
श्रद्धा, स्तवन, सेवा करे जे, ते तजे सम्यक्त्वने. १३.
सद्दर्शने उत्साह, श्रद्धा, भावना, सेवा अने
स्तुति ज्ञानमार्गथी जे करे, छोडे न जिनसम्यक्त्वने. १४.
अज्ञान ने मिथ्यात्व तज, लही ज्ञान, समकित शुद्धने;
वळी मोह तज सारंभ तुं, लहीने अहिंसाधर्मने. १५.
निःसंग लही दीक्षा, प्रवर्त सुसंयमे, सत्तप विषे;
निर्मोह वीतरागत्व होतां ध्यान निर्मळ होय छे. १६.
जे वर्तता अज्ञानमोहमले मलिन मिथ्यामते,
ते मूढजीव मिथ्यात्व ने मतिदोषथी बंधाय छे. १७.
देखे दरशथी, ज्ञानथी जाणे दरव-पर्यायने,
सम्यक्त्वथी श्रद्धा करे, चारित्रदोषो परिहरे. १८.
१. अज्ञानज्ञानविमूढ = अज्ञानतत्त्व अने ज्ञानतत्त्वनो भेद नहि जाणनार.
२. मार्गगुणस्तवना = निर्ग्रंथ मार्गना गुणनी प्रशंसा.
३. आर्जवभाव = सरळ परिणाम.
४ .लक्षाय = ओळखाय.
५. सारंभ = आरंभयुक्त.
६. अज्ञानमोहमले मलिन = अज्ञान अने मोहना दोषो वडे मलिन.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय