Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
रे! होय छे भावो त्रणे आ, मोहविरहित जीवने;
निज आत्मगुण आराधतो ते कर्मने अचिरे तजे. १९.
संसारसीमित निर्जरा अणसंख्य-संख्यगुणी करे,
सम्यक्त्व आचरनार धीरा दुःखना क्षयने करे. २०.
सागार अण-आगार एम द्विभेद संयमचरण छे;
सागार छे सगं्रथ, अण-आगार परिग्रहरहित छे. २१.
दर्शन, व्रतं, सामायिकं, प्रोषध, सचित, निशिभुक्ति ने
वळी ब्रह्म ने आरंभ आदिक देशविरतिस्थान छे. २२.
अणुव्रत कह्यां छे पांच ने त्रण गुणव्रतो निर्दिष्ट छे,
शिक्षाव्रतो छे चार;ए संयमचरण सागार छे. २३.
त्यां स्थूल त्रसहिंसा-असत्य-अदत्तना, परनारीना
परिहारने, आरंभपरिग्रहमानने अणुव्रत कह्यां. २४.
दिशविदिशगति-परिमाण होय, अनर्थदंड परित्यजे,
भोगोपभोग तणुं करे परिमाण,गुणव्रत त्रण्य छे. २५.
सामायिकं, व्रत प्रोषधं, अतिथि तणी पूजा अने
अंते करे सल्लेखनाशिक्षाव्रतो ए चार छे. २६.
श्रावकधरमरूप देशसंयमचरण भाख्युं ए रीते;
यतिधर्म-आत्मक पूर्णसंयमचरण शुद्ध कहुं हवे. २७.
पंचेन्द्रिसंवर, पांच व्रत पच्चीशक्रियासंबद्ध जे,
वळी पांच समिति, त्रिगुप्तिअण-आगार संयमचरण छे. २८.
सुमनोज्ञ ने अमनोज्ञ जीव-अजीवद्रव्योने विषे
करवा न रागविरोध ते पंचेन्द्रिसंवर उक्त छे. २९.
१. अचिरे = अल्प काळमां.२.निशिभुक्ति = रात्रिभोजनत्याग.
३. रागविरोध = रागद्वेष.
अष्टप्राभृत-चारित्रप्राभृत ]
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