Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 154 of 214
PDF/HTML Page 166 of 226

 

background image
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
निश्चयनयेज्यां आतमा आत्मार्थ आत्मामां रमे,
ते योगी छे सुचरित्रसंयुत; ते लहे निर्वाणने. ८३.
छे योगी, पुरुषाकार, जीव वरज्ञानदर्शनपूर्ण छे;
ध्यानार योगी पापनाशक द्वंद्वविरहित होय छे. ८४.
श्रमणार्थ जिन-उपदेश भाख्यो, श्रावकार्थ सुणो हवे,
संसारनुं हरनार शिव-करनार कारण परम ए. ८५.
ग्रही मेरुपर्वत-सम अकंप सुनिर्मळा सम्यक्त्वने,
हे श्रावको! दुखनाश अर्थे ध्यानमां ध्यातव्य ते. ८६.
सम्यक्त्वने जे जीव ध्यावे ते सुद्रष्टि होय छे,
सम्यक्त्वपरिणत वर्ततो दुष्टाष्टकर्मो क्षय करे. ८७.
बहु कथनथी शुं? नरवरो गत काळ जे सिद्ध्या अहो!
जे सिद्धशे भव्यो हवे, सम्यक्त्वमहिमा जाणवो. ८८.
नर धन्य ते, १०सुकृतार्थ ते, पंडित अने शूरवीर ते,
स्वप्नेय मलिन कर्युं न जेणे ११सिद्धिकर सम्यक्त्वने. ८९.
१५४ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय
१. आत्मार्थ = आत्मा अर्थे; आत्मा माटे.
२. पुरुषाकार = पुरुषना आकारे.
३. वरज्ञानदर्शनपूर्ण = (स्वभावे) उत्तम ज्ञानदर्शनथी परिपूर्ण.
४. ध्यानार = एवा जीवने
आत्मानेजे ध्यावे छे ते.
५. द्वंद्वविरहित = निर्द्वंद्व; (रागद्वेषादि) द्वंद्वथी रहित.
६. शिव करनार = मोक्षनुं करनारुं; सिद्धिकर.
७. नरवरो = उत्तम पुरुषो.
८. गत काळ = भूतकाळमां; पूर्वे.
९. सिद्ध्या = सिद्ध थया; मोक्ष पाम्या.
१०. सुकृतार्थ = जेमणे प्रयोजनने सारी रीते सिद्ध कर्युं छे एवा; सुकृतकृत्य.
११. सिद्धिकर = सिद्धि करनार; मोक्ष करनार.