Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). SamAdhitantra.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
श्री
समाधिातंत्र
(पद्यानुवाद)
(दोहरा)
नमुं सिद्ध परमात्मने, अक्षय बोधस्वरूप;
जेणे आत्मा आत्मरूप, पर जाण्युं पररूप. १.
बोल्या विण पण भारती-ॠद्धि ज्यां जयवंत,
इच्छा विण पण जेह छे तीर्थंकर भगवंत,
वंदुं ते सकलात्मने श्री तीर्थेश जिनेश,
सुगत तथा जे विष्णु छे, ब्रह्मा तेम महेश. २.
आगमथी ने लिंगथी, आत्मशक्ति अनुरूप,
हृदय तणा ऐकाग््रयथी सम्यक् वेदी स्वरूप,
मुक्तिसुख-अभिलाषीने कहीश आतमरूप,
परथी, कर्मकलंकथी, जेह विविक्तस्वरूप. ३.
आत्म त्रिधा सौ देहीमांबाह्यांतर-परमात्म;
मध्योपाये परमने ग्रहो, तजो बहिरात्म. ४.
आत्मभ्रान्ति देहादिमां करे तेह ‘बहिरात्म’;
‘आन्तर’ विभ्रमरहित छे, अतिनिर्मळ ‘परमात्म’. ५.
१. भारती-ॠद्धि = वाणीनी विभूति.२. लिंग = अनुमान अने हेतु.
३. विविक्त = भिन्न. ४. त्रिधा = त्रण प्रकारे.