श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
निर्मळ, केवळ, शुद्ध, जिन, प्रभु, विविक्त, परात्म,
इश्वर, परमेष्ठी अने १अव्यय ते परमात्म. ६.
इन्द्रिय द्वारा विषयमां बहार भमे बहिरात्म;
आतमज्ञानविमुख ते माने देह निजात्म. ७.
नरदेहे स्थित आत्मने नर माने छे मूढ,
पशुदेहे स्थितने पशु, २सुरदेहे स्थित सुर; ८.
नरक-तने३ नारक गणे, परमार्थे नथी एम,
अनंत ४धी-शक्तिमयी, अचळरूप, निजवेद्य. ९.
निज शरीर सम देखीने परजीवयुक्त शरीर,
माने तेने आतमा, बहिरातम मूढ जीव. १०.
विभ्रम पुत्र-रमादिगत५ ६आत्म-अज्ञने थाय.
देहोमां छे जेहने आतम-अध्यवसाय७. ११.
आ भ्रमथी अज्ञानमय द्रढ जामे संस्कार;
अन्य भवे पण देहने आत्मा गणे गमार. १२.
देहबुद्धि जन आत्मने करे देहसंयुक्त,
आत्मबुद्धि जन आत्मने तनथी करे विमुक्त. १३.
देहे आतमबुद्धिथी सुत-दारा८ कल्पाय;
ते सौ निज संपत गणी, हा! आ जगत हणाय. १४.
१. अव्यय = अविनाशी; पोताना शुद्धस्वरूपथी भ्रष्ट नहि थयेला
२. सुर = देव. ३. तन = शरीर.४. धी = बुद्धि;
ज्ञान.
५. रमा = स्त्री. ६. आत्म-अज्ञ = आत्माने नहि जाणनार.
७. आतम-अध्यवसाय = आत्मानी मान्यता. ८. दारा = स्त्री.
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