Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
परिग्रह कदी मारो बने तो हुं अजीव बनुं खरे,
हुं तो खरे ज्ञाता ज, तेथी नहि परिग्रह मुज बने. २०८.
छेदाव, वा भेदाव, को लई जाव, नष्ट बनो भले,
वा अन्य को रीत जाव, पण परिग्रह नथी मारो खरे. २०९.
अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे पुण्यने,
तेथी न परिग्रही पुण्यनो ते, पुण्यनो ज्ञायक रहे. २१०.
अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे पापने,
तेथी न परिग्रही पापनो ते, पापनो ज्ञायक रहे. २११.
अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे अशनने,
तेथी न परिग्रही अशननो ते, अशननो ज्ञायक रहे. २१२.
अनिच्छक कह्यो अपरिग्रही, ज्ञानी न इच्छे पानने,
तेथी न परिग्रही पाननो ते, पाननो ज्ञायक रहे. २१३.
ए आदि विधविध भाव बहु ज्ञानी न इच्छे सर्वने;
सर्वत्र आलंबन रहित बस नियत ज्ञायकभाव ते. २१४.
उत्पन्न उदयनो भोग नित्य वियोगभावे ज्ञानीने,
ने भावी कर्मोदय तणी कांक्षा नहीं ज्ञानी करे. २१५.
रे! वेद्य वेदक भाव बन्ने समय समये विणसे,
ए जाणतो ज्ञानी कदापि न उभयनी कांक्षा करे. २१६.
संसारदेहसंबंधी ने बंधोपभोगनिमित्त जे,
ते सर्व अध्यवसानउदये राग थाय न ज्ञानीने. २१७.
छो सर्व द्रव्ये रागवर्जक ज्ञानी कर्मनी मध्यमां,
पण रज थकी लेपाय नहि, ज्यम कनक कर्दममध्यमां. २१८.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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