श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
शुभ के अशुभ रस जेह ते ‘तुं चाख मुजने’ नव कहे,
ने जीव पण ग्रहवा न जाये रसनगोचर रस अरे! ३७८.
शुभ के अशुभ जे स्पर्श ते ‘तुं स्पर्श मुजने’ नव कहे,
ने जीव पण ग्रहवा न जाये कायगोचर स्पर्शने; ३७९.
शुभ के अशुभ जे गुण ते ‘तुं जाण मुजने’ नव कहे,
ने जीव पण ग्रहवा न जाये बुद्धिगोचर गुणने; ३८०.
शुभ के अशुभ जे द्रव्य ते ‘तुं जाण मुजने’ नव कहे,
ने जीव पण ग्रहवा न जाये बुद्धिगोचर द्रव्यने. ३८१.
— आ जाणीने पण मूढ जीव पामे नहीं उपशम अरे!
शिव बुद्धिने पामेल नहि ए पर ग्रहण करवा चहे. ३८२.
शुभ ने अशुभ अनेकविध पूर्वे करेलुं कर्म जे,
तेथी निवर्ते आत्मने, ते आतमा प्रतिक्रमण छे; ३८३.
शुभ ने अशुभ भावी करम जे भावमां बंधाय छे,
तेथी निवर्तन जे करे, ते आतमा पचखाण छे; ३८४.
शुभ ने अशुभ अनेकविध छे वर्तमाने उदित जे,
ते दोषने जे चेततो, ते जीव आलोचन खरे. ३८५.
पचखाण नित्य करे अने प्रतिक्रमण जे नित्ये करे,
नित्ये करे आलोचना, ते आतमा चारित्र छे. ३८६.
जे कर्मफळने वेदतो निजरूप करमफळने करे,
ते फरीय बांधे अष्टविधना कर्मने — दुखबीजने; ३८७.
जे कर्मफळने वेदतो जाणे ‘करमफळ में कर्युं’,
ते फरीय बांधे अष्टविधना कर्मने — दुखबीजने; ३८८.
श्री समयसार-पद्यानुवाद ]
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