Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration). 2. gyeytattva pragyApan.

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
२. ज्ञेयतत्त्व-प्रज्ञापन
छे अर्थ द्रव्यस्वरूप, गुण-आत्मक कह्यां छे द्रव्यने,
वळी द्रव्य-गुणथी पर्ययो; पर्यायमूढ परसमय छे. ९३.
पर्यायमां रत जीव जे ते ‘परसमय’ निर्दिष्ट छे;
आत्मस्वभावे स्थित जे ते ‘स्वकसमय’ ज्ञातव्य छे. ९४.
छोड्या विना ज स्वभावने उत्पाद-व्यय-ध्रुवयुक्त छे,
वळी गुण ने पर्यय सहित जे, ‘द्रव्य’ भाख्युं तेहने. ९५.
उत्पाद-ध्रौव्य-विनाशथी, गुण ने विविध पर्यायथी
अस्तित्व द्रव्यनुं सर्वदा जे, तेह द्रव्यस्वभाव छे. ९६.
विधविधलक्षणीनुं सरव-गत ‘सत्त्व’ लक्षण एक छे,
ए धर्मने उपदेशता जिनवरवृषभ निर्दिष्ट छे. ९७.
द्रव्यो स्वभावे सिद्ध ने ‘सत्’तत्त्वतः श्री जिनो कहे;
ए सिद्ध छे आगम थकी, माने न ते परसमय छे. ९८.
द्रव्यो स्वभाव विषे अवस्थित, तेथी ‘सत्’ सौ द्रव्य छे;
उत्पाद-ध्रौव्य-विनाशयुत परिणाम द्रव्यस्वभाव छे. ९९.
उत्पाद भंग विना नहीं, संहार सर्ग विना नहीं;
उत्पाद तेम ज भंग, ध्रौव्य-पदार्थ विण वर्ते नहीं. १००.
उत्पाद तेम ज ध्रौव्य ने संहार वर्ते पर्यये,
ने पर्ययो द्रव्ये नियमथी, सर्व तेथी द्रव्य छे. १०१.
उत्पाद-ध्रौव्य-विनाशसंज्ञित अर्थ सह समवेत छे
एक ज समयमां द्रव्य निश्चय, तेथी ए त्रिक द्रव्य छे. १०२.
५० ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय