Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
द्रव्यार्थिके बधुं द्रव्य छे; ने ते ज पर्यायार्थिके
छे अन्य, जेथी ते समय तद्रूप होई अनन्य छे. ११४.
अस्ति, तथा छे नास्ति, तेम ज द्रव्य अणवक्तव्य छे,
वळी उभय को पर्यायथी, वा अन्यरूप कथाय छे. ११५.
नथी ‘आ ज’ एवो कोई, ज्यां किरिया स्वभाव-निपन्न छे;
किरिया नथी फळहीन, जो निष्फळ धरम उत्कृष्ट छे. ११६.
नामाख्य कर्म स्वभावथी निज जीवद्रव्य-स्वभावने
अभिभूत करी तिर्यंच, देव, मनुष्य वा नारक करे. ११७.
तिर्यंच-सुर-नर-नारकी जीव नामकर्म-निपन्न छे;
निज कर्मरूप परिणमनथी ज स्वभावलब्धि न तेमने. ११८.
नहि कोई ऊपजे विणसे क्षणभंगसंभवमय जगे,
कारण जनम ते नाश छे; वळी जन्म-नाश विभिन्न छे. ११९.
तेथी स्वभावे स्थिर एवुं न कोई छे संसारमां;
संसार तो संसरण करता द्रव्य केरी छे क्रिया. १२०.
कर्मे मलिन जीव कर्मसंयुत पामतो परिणामने,
तेथी करम बंधाय छे; परिणाम तेथी कर्म छे. १२१.
परिणाम पोते जीव छे, ने छे क्रिया ए जीवमयी;
किरिया गणी छे कर्म; तेथी कर्मनो कर्ता नथी. १२२.
जीव चेतनारूप परिणमे; वळी चेतना त्रिविधा गणी;
ते ज्ञानविषयक, कर्मविषयक, कर्मफळविषयक कही. १२३.
छे ‘ज्ञान’ अर्थविकल्प, ने जीवथी करातुं ‘कर्म’ छे,
ते छे अनेक प्रकारनुं, ‘फळ’ सौख्य अथवा दुःख छे. १२४.
५२ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय