श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
परिणाम-आत्मक जीव छे, परिणाम ज्ञानादिक बने;
तेथी करमफळ, कर्म तेम ज ज्ञान आत्मा जाणजे. १२५.
‘कर्ता, करम, फळ, करण जीव छे’ एम जो निश्चय करी
मुनि अन्यरूप नव परिणमे, प्राप्ति करे शुद्धात्मनी. १२६.
छे द्रव्य जीव, अजीव; चित-उपयोगमय ते जीव छे;
पुद्गलप्रमुख जे छे अचेतन द्रव्य, तेह अजीव छे. १२७.
आकाशमां जे भाग धर्म-अधर्म-काळ सहित छे,
जीव-पुद्गलोथी युक्त छे, ते सर्वकाळे लोक छे. १२८.
उत्पाद, व्यय ने ध्रुवता जीवपुद्गलात्मक लोकने
परिणाम द्वारा, भेद वा संघात द्वारा थाय छे. १२९.
जे लिंगथी द्रव्यो महीं ‘जीव’ ‘अजीव’ एम जणाय छे,
ते जाण मूर्त-अमूर्त गुण, अतत्पणाथी विशिष्ट जे. १३०.
गुण मूर्त इन्द्रियग्राह्य ते पुद्गलमयी बहुविध छे;
द्रव्यो अमूर्तिक जेह तेना गुण अमूर्तिक जाणजे. १३१.
छे वर्ण तेम ज गंध वळी रस-स्पर्श पुद्गलद्रव्यने,
— अतिसूक्ष्मथी पृथ्वी सुधी; वळी शब्द पुद्गल, विविध जे. १३२.
अवगाह गुण आकाशनो, गतिहेतुता छे धर्मनो,
वळी स्थानकारणतारूपी गुण जाण द्रव्य अधर्मनो. १३३.
छे काळनो गुण वर्तना, उपयोग भाख्यो जीवमां,
ए रीत मूर्तिविहीनना गुण जाणवा संक्षेपमां. १३४.
जीवद्रव्य, पुद्गलकाय, धर्म, अधर्म वळी आकाशने
छे स्वप्रदेश अनेक, नहि वर्ते प्रदेशो काळने. १३५.
श्री प्रवचनसार-पद्यानुवाद ]
[ ५३