Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
लोके अलोके आभ, लोक अधर्म-धर्मथी व्याप्त छे,
छे शेष-आश्रित काळ, ने जीव-पुद्गलो ते शेष छे. १३६.
जे रीत आभ-प्रदेश, ते रीत शेषद्रव्य-प्रदेश छे;
अप्रदेश परमाणु वडे उद्भव प्रदेश तणो बने. १३७.
छे काळ तो अप्रदेश; एकप्रदेश परमाणु यदा
आकाशद्रव्य तणो प्रदेश अतिक्रमे, वर्ते तदा. १३८.
ते देशना अतिक्रमण सम छे ‘समय’, तत्पूर्वापरे
जे अर्थ छे ते काळ छे, उत्पन्नध्वंसी ‘समय’ छे. १३९.
आकाश जे अणुव्याप्य, ‘आभप्रदेश’ संज्ञा तेहने;
ते एक सौ परमाणुने अवकाशदानसमर्थ छे. १४०.
वर्ते प्रदेशो द्रव्यने, जे एक अथवा बे अने
बहु वा असंख्य, अनंत छे; वळी होय समयो काळने. १४१.
एक ज समयमां ध्वंस ने उत्पादनो सद्भाव छे
जो काळने, तो काळ तेह स्वभाव-समवस्थित छे. १४२.
प्रत्येक समये जन्म-ध्रौव्य-विनाश अर्थो काळने
वर्ते सरवदा; आ ज बस काळाणुनो सद्भाव छे. १४३.
जे अर्थने न बहु प्रदेश, न एक वा परमार्थथी,
ते अर्थ जाणो शून्य केवळअन्य जे अस्तित्वथी. १४४.
सप्रदेश अर्थोथी समाप्त समग्र लोक सुनित्य छे;
तसु जाणनारो जीव, प्राणचतुष्कथी संयुक्त जे. १४५.
इन्द्रियप्राण, तथा वळी बळप्राण, आयुप्राण ने
वळी प्राण श्वासोच्छ्वासए सौ, जीव केरा प्राण छे. १४६.
५४ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय