Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
स्कंधो करमने योग्य पामी जीवना परिणामने
कर्मत्वने पामे; नहीं जीव परिणमावे तेमने. १६९.
कर्मत्वपरिणत पुद्गलोना स्कंध ते ते फरी फरी
शरीरो बने छे जीवने, संक्रांति पामी देहनी. १७०.
जे देह औदारिक, ने वैक्रिय-तैजस देह छे,
कार्मण-अहारक देह जे, ते सर्व पुद्गलरूप छे. १७१.
छे चेतनागुण, गंध-रूप-रस-शब्द-व्यक्ति न जीवने,
वळी लिंगग्रहण नथी अने संस्थान भाख्युं न तेहने. १७२.
अन्योन्य स्पर्शथी बंध थाय रूपादिगुणयुत मूर्तने;
पण जीव मूर्तिरहित बांधे केम पुद्गलकर्मने? १७३.
जे रीत दर्शन-ज्ञान थाय रूपादिनुंगुण-द्रव्यनुं,
ते रीत बंधन जाण मूर्तिरहितने पण मूर्तनुं. १७४.
विधविध विषयो पामीने उपयोग-आत्मक जीव जे
प्रद्वेष-राग-विमोहभावे परिणमे, ते बंध छे. १७५.
जे भावथी देखे अने जाणे विषयगत अर्थने,
तेनाथी छे उपरक्तता; वळी कर्मबंधन ते वडे. १७६.
रागादि सह आत्मा तणो, ने स्पर्श सह पुद्गल तणो,
अन्योन्य जे अवगाह तेने बंध उभयात्मक कह्यो. १७७.
सप्रदेश छे ते जीव, जीवप्रदेशमां आवे अने
पुद्गलसमूह रहे यथोचित, जाय छे, बंधाय छे. १७८.
जीव रक्त बांधे कर्म, राग रहित जीव मुकाय छे;
आ जीव केरा बंधनो संक्षेप निश्चय जाणजे. १७९.
श्री प्रवचनसार-पद्यानुवाद ]
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