Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
ए रीत सत्-व्यय ने असत्-उत्पाद होय न जीवने;
सुरनरप्रमुख गतिनामनो हदयुक्त काळ ज होय छे. १९.
ज्ञानावरण इत्यादि भावो जीव सह अनुबद्ध छे;
तेनो करीने नाश, पामे जीव सिद्धि अपूर्वने. २०.
गुणपर्यये संयुक्त जीव संसरण करतो ए रीते
उद्भव, विलय, वळी भाव-विलय, अभाव-उद्भवने करे. २१.
जीवद्रव्य, पुद्गलकाय, नभ ने अस्तिकायो शेष बे
अणकृतक छे, अस्तित्वमय छे, लोककारणभूत छे. २२.
सत्तास्वभावी जीव ने पुद्गल तणा परिणमनथी
छे सिद्धि जेनी, काळ ते भाख्यो जिणंदे नियमथी. २३.
रसवर्णपंचक, स्पर्श-अष्टक, गंधयुगल विहीन छे,
छे मूर्तिहीन, अगुरुलघुक छे, काळ वर्तनलिंग छे. २४.
जे समय, निमिष, कळा, घडी, दिनरात, मास, ॠतु अने
जे अयन ने वर्षादि छे, ते काळ पर-आयत्त छे. २५.
‘चिर’ ‘शीघ्र’ नहि मात्रा विना, मात्रा नहीं पुद्गल विना,
ते कारणे पर-आश्रये उत्पन्न भाख्यो काळ आ. २६.
छे जीव, चेतयिता, प्रभु, उपयोगचिह्न, अमूर्त छे,
कर्ता अने भोक्ता, शरीरप्रमाण, कर्मे युक्त छे. २७.
सौ कर्ममळथी मुक्त आत्मा पामीने लोकाग्रने,
सर्वज्ञदर्शी ते अनंत अनिंद्रि सुखने अनुभवे. २८.
स्वयमेव चेतक सर्वज्ञानी-सर्वदर्शी थाय छे,
ने निज अमूर्त अनंत अव्याबाध सुखने अनुभवे. २९.
श्री पंचास्तिकायसंग्रह-पद्यानुवाद ]
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