Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जे चार प्राणे जीवतो पूर्वे, जीवे छे, जीवशे,
ते जीव छे; ने प्राण इन्द्रिय-आयु-बळ-उच्छ्वास छे. ३०.
जे अगुरुलघुक अनंत ते-रूप सर्व जीवो परिणमे;
सौना प्रदेश असंख्य; कतिपय लोकव्यापी होय छे; ३१.
अव्यापी छे कतिपय; वळी निर्दोष सिद्ध जीवो घणा;
मिथ्यात्व-योग-कषाययुत संसारी जीव बहु जाणवा. ३२.
ज्यम दूधमां स्थित पद्मरागमणि प्रकाशे दूधने,
त्यम देहमां स्थित देही देहप्रमाण व्यापकता लहे. ३३.
तन तन धरे जीव, तन महीं ऐक्यस्थ पण नहि एक छे,
जीव विविध अध्यवसाययुत, रजमळमलिन थईने भमे. ३४.
जीवत्व नहि ने सर्वथा तदभाव पण नहि जेमने,
ते सिद्ध छेजे देहविरहित वचनविषयातीत छे. ३५.
ऊपजे नहीं को कारणे ते सिद्ध तेथी न कार्य छे,
उपजावता नथी कांई पण तेथी न कारण पण ठरे. ३६.
सद्भाव जो नहि होय तो ध्रुव, नाश, भव्य, अभव्य ने
विज्ञान, अणविज्ञान, शून्य, अशून्यए कंई नव घटे. ३७.
त्रणविध चेतकभावथी को जीवराशि ‘कार्य’ने,
को जीवराशि ‘कर्मफळ’ने, कोई चेते ‘ज्ञान’ने. ३८.
वेदे करमफळ स्थावरो, त्रस कार्ययुत फळ अनुभवे,
प्राणित्वथी अतिक्रांत जे ते जीव वेदे ज्ञानने. ३९.
छे ज्ञान ने दर्शन सहित उपयोग युगल प्रकारनो;
जीवद्रव्यने ते सर्व काळ अनन्यरूपे जाणवो. ४०.
७० ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय