Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
मति, श्रुत, अवधि, मनः, केवळपांच भेदो ज्ञानना;
कुमति, कुश्रुत, विभंगत्रण पण ज्ञान साथे जोडवां. ४१.
दर्शन तणा चक्षु-अचक्षुरूप, अवधिरूप ने
निःसीमविषय अनिधन केवळरूप भेद कहेल छे. ४२.
छे ज्ञानथी नहि भिन्न ज्ञानी, ज्ञान तोय अनेक छे;
ते कारणे तो विश्वरूप कह्युं दरवने ज्ञानीए. ४३.
जो द्रव्य गुणथी अन्य ने गुण अन्य मानो द्रव्यथी,
तो थाय द्रव्य-अनंतता वा थाय नास्ति द्रव्यनी. ४४.
गुण-द्रव्यने अविभक्तरूप अनन्यता बुधमान्य छे;
पण त्यां विभक्त अनन्यता वा अन्यता नहि मान्य छे. ४५.
व्यपदेश ने संस्थान, संख्या, विषय बहु ये होय छे;
ते तेमना अन्यत्व तेम अनन्यतामां पण घटे. ४६.
धनथी ‘धनी’ ने ज्ञानथी ‘ज्ञानी’द्विधा व्यपदेश छे,
ते रीत तत्त्वज्ञो कहे एकत्व तेम पृथक्त्वने. ४७.
जो होय अर्थांतरपणुं अन्योन्य ज्ञानी-ज्ञानने,
बन्ने अचेतनता लहेजिनदेवने नहि मान्य जे. ४८.
रे! जीव ज्ञानविभिन्न नहि समवायथी ज्ञानी बने;
‘अज्ञानी’ एवुं वचन ते एकत्वनी सिद्धि करे. ४९.
समवर्तिता समवाय छे, अपृथक्त्व ते, अयुतत्व ते;
ते कारणे भाखी अयुतसिद्धि गुणो ने द्रव्यने. ५०.
परमाणुमां प्ररूपित वरण, रस, गंध, तेम ज स्पर्श जे,
अणुथी अभिन्न रही विशेष वडे प्रकाशे भेदने; ५१.
श्री पंचास्तिकायसंग्रह-पद्यानुवाद ]
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