श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जडरूप पुद्गलकाय केरा चार भेदो जाणवा;
ते स्कंध, तेनो देश, स्कंधप्रदेश, परमाणु कह्या. ७४.
पूरण-सकळ ते ‘स्कंध’ छे ने अर्ध तेनुं ‘देश’ छे,
अर्धार्ध तेनुं ‘प्रदेश’ ने अविभाग ते ‘परमाणु’ छे. ७५.
सौ स्कंध बादर-सूक्ष्ममां ‘पुद्गल’ तणो व्यवहार छे;
छ विकल्प छे स्कंधो तणा, जेथी त्रिजग निष्पन्न छे. ७६.
जे अंश अंतिम स्कंधनो, परमाणु जाणो तेहने;
ते एक ने अविभाग, शाश्वत, मूर्तिप्रभव, अशब्द छे. ७७.
आदेशमात्रथी मूर्त, धातुचतुष्कनो छे हेतु जे,
ते जाणवो परमाणु — जे परिणामी, आप अशब्द छे. ७८.
छे शब्द स्कंधोत्पन्न; स्कंधो अणुसमूहसंघात छे,
स्कंधाभिघाते शब्द ऊपजे, नियमथी उत्पाद्य छे. ७९.
नहि अनवकाश, न सावकाश प्रदेशथी, अणु शाश्वतो,
भेत्ता
रचयिता स्कंधनो, प्रविभागी संख्या-काळनो. ८०.
एक ज वरण-रस-गंध ने बेे स्पर्शयुत परमाणु छे,
ते शब्दहेतु, अशब्द छे, ने स्कंधमां पण द्रव्य छे. ८१.
इन्द्रिय वडे उपभोग्य, इन्द्रिय, काय, मन ने कर्म जे,
वळी अन्य जे कंई मूर्त ते सघळुंय पुद्गल जाणजे. ८२.
धर्मास्तिकाय अवर्णगंध, अशब्दरस, अस्पर्श छे;
लोकावगाही, अखंड छे, विस्तृत, असंख्यप्रदेश छे. ८३.
जे अगुरुलघुक अनंत ते-रूप सर्वदा ए परिणमे,
छे नित्य, आप अकार्य छे, गतिपरिणमितने हेतु छे. ८४.
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[ शास्त्र-स्वाध्याय