Shastra Swadhyay-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर टस्ट, सोनगढ -
जू, कुं भी, माकड, कीडी, तेम ज वृश्चिकादिक जंतु जे
रस, गंध तेम ज स्पर्श जाणे, जीव त्रीन्द्रिय तेह छे. ११५.
मधमाख, भ्रमर, पतंग, माखी, डांस, मच्छर आदि जे,
ते जीव जाणे स्पर्शने, रस, गंध तेम ज रूपने. ११६.
स्पर्शादिपंचक जाणतां तिर्यंच-नारक-सुर-नरो
जळचर, भूचर के खेचरोबळवान पंचेन्द्रिय जीवो. ११७.
नर कर्मभूमिज भोगभूमिज, देव चार प्रकारना,
तिर्यंच बहुविध, नारकोना पृथ्वीगत भेदो कह्या. ११८.
गतिनाम ने आयुष्य पूर्वनिबद्ध ज्यां क्षय थाय छे,
त्यां अन्य गति-आयुष्य पामे जीव निजलेश्यावशे. ११९.
आ उक्त जीवनिकाय सर्वे देहसहित कहेल छे,
ने देहविरहित सिद्ध छे; संसारी भव्य-अभव्य छे. १२०.
रे! इन्द्रियो नहि जीव, षड्विध काय पण नहि जीव छे;
छे तेमनामां ज्ञान जे बस ते ज जीव निर्दिष्ट छे. १२१.
जाणे अने देखे बधुं, सुख अभिलषे, दुखथी डरे,
हित-अहित जीव करे अने हित-अहितनुं फळ भोगवे. १२२.
बीजाय बहु पर्यायथी ए रीत जाणी जीवने,
जाणो अजीवपदार्थ ज्ञानविभिन्न जड लिंगो वडे. १२३.
छे जीवगुण नहि आभ-धर्म-अधर्म-पुद्गल-काळमां;
तेमां अचेतनता कही, चेतनपणुं कह्युं जीवमां. १२४.
सुखदुःखसंचेतन, अहितनी भीति, उद्यम हित विषे
जेने कदी होतां नथी, तेने अजीव श्रमणो कहे. १२५.
७८ ]
[ शास्त्र-स्वाध्याय