Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९६ ][ श्री जिनेन्द्र
ये गुन सुन मैं शरने आयो
मोही मोह दुःख देत घने रे....
ता मद भानन स्वपर पिछानन
तुम बिन आन न कारण है रे...जगदा०
तुम पद शरन ग्रही जिननें ते
जामनजरामरन निरवेरे....
तुमतें विमुख भये शठ तिन को,
चहुं गति विपत महाविधि पेरे...जगदा०
तुम रे अमित सुगुन ज्ञानादिक
सतत मुदित गनराज उकेरे....
लहत न मित्त मैं पतित कहों किम,
किन शिशुगन गिरिराज उखेरे....जगदा०
तुम बिन राग दोष, दर्पन ज्यों
निज निज भाव फलें तिन केरे...
तुम हो सहज जगत उपकारी
शिवपद सारथवाह भले रे...जगदा०
तुम दयाल बेहाल बहुत हम,
काल कराल व्याल चिर घेरे....
भाल नाय गुनमाल जपूं तुम
हे दयाल दुःख टाल सबेरे...जगदा०
तुम बहु पतित सु पावन कीने
क्यों न हरो भव संकट मेरे....