१०० ][ श्री जिनेन्द्र
नंदीश्वर की महिमा गाउं,
दर्शन – पूजन चित्तमें लाउं;
पहुंचन को तो वहां न पाउं,
हृदय स्थापी फिर फिर ध्याउं.......
वीतरागी भगवान को.....(४) हिल. ३
स्वर्णधाम की शोभा सारी,
कहान गुरु की वाणी प्यारी;
मानस्तंभ छे उन्नत भारी,
गंधकुटी दिसे मनोहारी......
— शोभा जिनवर – धामकी.....(४)
— शोभा सुवरन – धामकी....(४) हिल. ४
देशदेश के यात्री आकर,
गुरु – कहानका परिचय पाकर,
आत्मतत्त्वका प्रवचन सुनकर,
गाता है निज हृदय खोलकर,
– महिमा गुरुवर कहान की......(४) हिल. ५
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अष्टािÛका – भजन
(राग — अब सुणो सहु संदेश...)
श्री सिद्धचक्र का पाठ, करो दिन आठ, ठाठसे प्रानी,
फल पायो मैना राणी....(टेक)