Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११० ][ श्री जिनेन्द्र
मुक्ति महल के हो तुम वासी, क्या दुनियां से मेल,
फिर भी दुनियां खेल रही है, तेरे नाम का खेल,
है सब को तेरा ही आधार, जपें जो तुम्हें लागे भव पार,
अब तारो ध्यान धरो हमारी अरजी...खडे.
मोक्षद्वीप मैं झट झट ले लो आज सेवक की नईयां,
कोई न संगी, कोई न साथी, एकाएक खिवैया,
जपूं में नाम तेरा हरबार, कि जिससे नाव लगे भवपार,
तुम तारो ध्यान धारो हमारी अरजी....खडे.
श्री महावीरभजन
(आज हिमालयकी चोटीसे)
महावीर की मधुवाणी से दुनियांको समझाया है,
अंतर मुख पथ पर बढने का आदेश बताया है.
जिस की आकर्षक प्रतिभा लख मानवजन हर्षाया है,
उसी दिगंबर वीर प्रभुने केशरिया लहराया है.
अनेकान्त का अग्रदूत दुनियां को तू मन भाया है,
अपनी अद्भुत शक्तिसे जग का अंधेर मिटाया है.
विश्वपिता महावीर तुम्हारा गुण वर्णन नहीं आया है,
समय समय भक्तों तो तुमने भवसे पार लगाया है.
त्रिशला के द्रग तारे तुमने जीवन ज्योति जगाई है,
‘शेठी’ने प्रभु के चरणोंमें अपना शीश झुकाया है.