६ ][ श्री जिनेन्द्र
सब कुवाद वादी सरदार,
जीते स्याद् वाद धुनि सार;
जैनधरम परकाशक स्वाम,
सुमतिदेवपद करहुं प्रणाम...५
गर्भ अगाउ धनपति आय,
करी नगर शोभा अधिकाय,
वरसे रतन पंच दश मास,
नमूं पदम प्रभु सुखकी राश... ६
इन्द्र फनिंद नरिंद त्रिकाल,
वाणी सुनि सुनि होई खुशाल;
द्वादश सभा ज्ञानदातार,
नमूं सु पारसनाथ निहार... ७
सुगुन छियालीस हैं तुममांही,
दोष अठारह कोउ नांही;
मोह महातम नाशक दीप,
नमूं चंद्रप्रभ राख समीप... ८
द्वादशविध तप करम विनाश,
तेरह भेद चरित परकाश;
निज अनिच्छ भवि इच्छकदान,
वंदूं पुष्पदंत मन आन... ९