भजनमाळा ][ ७
भवि सुखदाय सुरगतें आय,
दशविध धरम कह्यो जिनराय;
आप समान सबनि सुखदेह,
वंदूं शीतल धर्मसनेह... १०
समता सुधा कोप विष नाश,
द्वादशांग वानी परकाश;
चार संघ आनंद दातार,
नमूं श्रेयांस जिनेश्वर सार... ११
रतनत्रय चिर मुकुट विशाल,
शोभे कंठ सुगुन मनिमाल;
मुक्तिनार भरता भगवान,
वासुपूज्य वंदूं धर ध्यान... १२
परम समाधि स्वरूप जिनेश,
ज्ञानी ध्यानी हित उपदेश;
कर्म नाशि शिवसुख विलसंत,
वंदूं विमलनाथ भगवंत... १३
अंतर बाहिर परिगह डारी,
परम दिगंबर व्रतको धारी;
सर्व जीव हित राह दिखाय,
नमूं अनंत वचनमन लाय... १४