८ ][ श्री जिनेन्द्र
सात तत्त्व पंचासतिकाय,
अरथ नवों छ दरव बहु भाय;
लोक अलोक सकल परकाश,
वंदूं धर्मनाथ अविनाश... १५
पंचम चक्रवर्ती निधिभोग,
कामदेव द्वादशम मनोग,
शांतिकरन सोलम जिनराय,
शांतिनाथ वंदूं हरषाय... १६
बहु थुति करें हरष नहि होय,
निंदे दोष गहै नहि कोय;
शीलवान परब्रह्म स्वरूप,
वंदूं कुंथुनाथ शिवभूप... १७
द्वादश गण पूजें सुखदाय,
थुति वंदना करें अधिकाय;
जाकी निज थुति कबहुं न होय,
वंदूं अर-जिनवर पद दोय... १८
पर भव रतनत्रय अनुराग,
इह भव व्याह समय वैराग;
बाल ब्रह्म पूरन व्रत धार,
वंदूं मल्लिनाथ जिन सार... १९