१० ][ श्री जिनेन्द्र
(दोहा)
चोवीसों पद कमल जुग, वंदूं मन वच काय;
‘द्यानत’ पढे सुने सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय.
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संकट हरन विनति
(दोहा)
जासु धर्म परभावसों, संकट कटत अनंत;
मंगल मूरति देव सो जयवंतो अरहंत.
हे करुणानिधि सुजन को, कष्टविषे लखि लेत;
तजि विलंब दुःख नष्ट किय अब विलंब किह हेत. १
(छप्पा)
तब विलंब नहीं कियो दियो नमि को रजता बल,
तब विलंब नहीं कियो मेघ वाहन लंका थल;
तब विलंब नहीं कियो शेठ सुत दारिद भंजे,
तब विलंब नहीं कियो नाग जुग सुरपद रंजे.
इम चूरि भूरि दुःख भक्त के सुख पूरे शिवतिय वरन;
प्रभु मोहि दुःख नाशन विषे, अब विलंब कारन कवन. २
तब विलंब नहीं कियो सीता पावक जल कीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो चंदना शृंखल छीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो चीर द्रौपदि को बाढ्यो,
तब विलंब नहीं कियो सुलोचन गंगा काढ्यो....इम चूरि० ३