भजनमाळा ][ ११
तब विलंब नहीं कियो साप किय कुसुम सुमाला,
तब विलंब नहीं कियो उर्मिला सुरथ निकाला;
तब विलंब नहीं कियो शील बल फाटक खूल्ले,
तब विलंब नहीं कियो अंजना वन मन फूले...इम चूरि० ४
तब विलंब नहीं कियो शेठ सिंहासन दीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो सिंधु श्रीपाल कढीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो प्रतिज्ञा वज्रकर्ण पल,
तब विलंब नहीं कियो सुधन्ना काढि वापिथल...इम चूरि० ५
तब विलंब नहीं कियो कंस भय त्रिजुग उगारे,
तब विलंब नहीं कियो कृष्ण सुत शिला उधारे;
तब विलंब नहीं कियो खड्ग मुनिराज बचायो,
तब विलंब नहीं कियो नीर मातंग उचायो...इम चूरि० ६
तब विलंब नहीं कियो शेठ सुत निरविष कीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो मानतुंग बंध हरीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो वादिमुनि कोढ मिटायो,
तब विलंब नहीं कियो कुमुद निजपास कटायो....इम चूरि० ७
तब विलंब नहीं कियो अंजना चोर उगार्यो,
तब विलंब नहीं कियो पूरवा भील सुधार्यो;
तब विलंब नहीं कियो गृद्धपक्षी सुंदर तन,
तब विलंब नहीं कियो भेद दिय सुर अद्भुतधन..इम चूरि० ८
इह विधि दुःख निरवार सार सुख प्राप्ति कीन्हों,
अपनो दास निहारि भक्त वत्सल गुण चीन्हों;