१२ ][ श्री जिनेन्द्र
अब विलंब किहीं हेत कृपा कर इहां लगाई,
कहा सुनो अरदास नांही त्रिभुवन के राई...
इम चूरि भूरि दुःख भक्त के, सुख पूरे शिवतिय वरन;
प्रभु मोही दुःख नाशन विषे, अब विलंब कारन कवन. ९
जन वृंद सु मनवचतन अबे, ग्रही नाथ तुम पद शरन;
सुधि ले दयाल मम हाल पै, कर मंगल मंगलकरम. १०
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श्री जिनेन्द्र स्तवन
[पुकार स्तुति]
(दोहा)
जे या भव संसार में भुगतें दुःख अपार;
तिन पुकार प्रभुजी में करुं कवित इक ढार.
[चेतनरूप अनूप अमूरत, सिद्धसमान सदा...ए रागः तेवीसा छंद]
श्री जिनराज गरीब निवाज
सुधारन काज सबे सुखदाई,
दीन दयाल बडे प्रतिपाल
दया गुणमाल सदा शिर नाई;
दुर्गति टारन पाप निवारन
हो भवि तारन को भव ताई,
बारहिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... १