Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ ][ श्री जिनेन्द्र
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
मैं इस ही भवकानन में
भटक्यो चिरकाल सुहाल गमाइ,
किंचित् ही तिलसे सुखको
बहु भांति उपाय करे ललचाई;
चार गतें चिर में भटक्यो
जहं मेरु समान महा दुःखदाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
जे दुःख मैं भुगते भव के
तिनके वरणे कहुं पार न पाई,
काल अनादि न आदि भयो
तहं में दुःखभाजन हो अघमांही;
मातपिता तुम हो जग के
तुम छांडि फिराद करुं कहं जाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
सो तुमसों सब दुःख कहों
प्रभु जानत हो तुम पीड हमारी,
मैं तुम को सतसंग कियो
दिन हू दिन आवत शरन तिहारी;