भजनमाळा ][ १५
ज्ञान महानिधि मोहि दियो प्रभु!
रंक भयो इनको नहि पाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... ७
यह विनति सुन सेवककी
निज मारगमें प्रभु लेहु लगाई
मैं तुम दास रह्यो तुमरे संग
लाज रह्यो शरणागति आई;
मैं तुव दास उदास भयो
तुमरी गुणमाला साद उर लाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... ८
देर करो मत श्री करुणानिधि
जो पत राखनहार निकाई,
योग जुरे क्रमसों प्रभुजी यह
न्याय हजूर भयो तुम आई;
आन रह्यो शरणागति हों
तुमरा सुनके तिहुंलोक बडाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... ९
मैं प्रभुजी तुम्हरी समहू
इन अंतर पार दियो दुसराई,