भजनमाळा ][ १७
श्री अनंतनाथ स्तवन
(चालः त्रिभुवनगुरु स्वामीजी...सामायिकवालेजी)
जय अनंत जिनेश्वरजी, पुष्पोत्तर तैं स्वरजी
सिंघ सेन नरसुर के चय सुत भये जी;
‘सूर्यादे’ माताजी, जग पुण्य विख्याताजी,
तिन के जगत्राता गर्भविषें थये जी. १
कार्तिक अंधियारीजी, परिवा अविकारी जी,
साकेत मंझारी कल्याक हरि कियोजी;
षटमास अगारेजी, मणि स्वर्ण घनेरेजी,
वरसे नृप केरे मंदिर धन जयोजी. २
द्वादशी अंधियारीजी, जनमे हितकारी जी,
प्रभु जेठ मंझारी सुरापुर आयकें जी;
सुरगिरि लै आयै जी, भव मंगल गाये जी,
अभिषेक रचाये पूजें ध्यायके जी. ३
फिर पितु घर लाये जी, नचि तूर बजाये जी,
अंग नमाये मात पिता तबै जी;
तन हेम महा छबिजी, पंचास धनु रवि जी,
लखि तीस कहे कवि आयु भई सबै जी. ४
नृप पदवी धरीजी, लखि पणदह सारी जी,
सब अनित्य विचारी तपोवनकुं गये जी;