Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८ ][ श्री जिनेन्द्र
वदि जेठ दुवादसीजी, तप देखी रवरा रिषिजी,
पद पूजि नये नसि पाप सबे गये जी.
षष्टम करी पूरो जी, भोजन हित सूरो जी,
पूर धर्म सनूरो आवत देखिकें जी;
नव भक्ति थकी पयजी, विशाख तहां दय जी,
मणिवृष्टि अखय करी सुरगण पेखिकें जी.
धरि ध्यान शुक्ल तबजी, चउ घाति हने जबजी,
सुर आय मिले सब ज्ञान कल्याण ही जी;
वदी चैत अमावसीजी, जखी भुक्ति तुहे वसिजी,
समवादी रच्यो तसु उपमा भी नहि जी.
समवादी जिते भवि जी, सुनि धर्म तीरे सबजी,
प्रभु आयु रही जब मास तणी तबे जी;
संमेद पधारे जी, सब जोग संघारे जी,
समभाव विथारी वरी शिवतिय जबे जी.
वसु गुण जुत भूषित जी, भव छारि वसे तित जी;
सुख मगन भये जित मावस चैतकी जी;
सुर सब मिलि आयेजी, शिव मंगल गायेजी,
बहु पुण्य उपाय चले तुम गुणतकी जी.
गुण वृन्द तुम्हारे जी, बुध कन उचारे जी,
गणदेव निहारे पै वच ना कहे जी;