भजनमाळा ][ २१
जय जय महावीर प्रभो जगको जगाकर आपने,
मिथ्यात्व – जन्य अनंत दुःखों सें छुडाकर आपने,
इस लोकको सुरलोक से भी परम पावन कर दिया,
अज्ञान – आकर विश्वको प्रज्ञान – सागर है किया... ८
✽
श्री पद्मप्रभु स्तवन
(दोहा)
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम;
उपाध्याय आचार्यका, ले सुखकारी नाम,
सर्व साधु अरु सरस्वती, जिनमंदिर सुखकार;
छठ्ठे जिनवर पद्म को मन मंदिर में धार.
(चोपाई)
जय श्री पद्मप्रभु गुणधारी, भविजन के तुम हो हितकारी;
देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्त के दूर हटाओ. १
तुम जगमें सर्वज्ञ कहाओ, छठ्ठे तीर्थंकर कहलाओ;
तीनकाल तिहुं जगकी जानो; सब बातें क्षणमें पहिचानो. २
वेष दिगंबर धारन हारे, तुमसे कर्म शत्रु भी हारे,
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुंदर, द्रष्टि सुखद जमती नासा पर. ३
क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग – द्वेष का लेश न पाया,
वीतराग तुम कहलाते हो, सब जग के मनको भाते हो. ४