२२ ][ श्री जिनेन्द्र
कौशांबी नगरी कहलाये, राजा धारण जी बतलाये,
सुन्दर नार सुसीमा उनके, जिसके उरसे स्वामी जन्मे. ५
कितनी लंबी उमर कहाई, तीस लाख पूरव बतलाई,
इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग्य उमडकर. ६
कार्तिक सुदी त्रयोदश भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी,
सारे राजपाट को तज के, जभी मनोहर बनमें पहुंचे. ७
तप कर केवलज्ञान उपाया, चैत सुदी पंदरस कहलाया,
एक सो दस गणधर बतलाये, मुख्य वज्र चामर कहलाये. ८
लाखों मुनि अर्जिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों,
असंख्यात तिर्यंच बताये, देवी देव गिनत नहि पाये. ९
फिर सम्मेद शिखर पर जाके, शिवरमणी को ली परनाके,
पंचम गति महा सुखदाई, वह तुमने महिमावंत पाई. १०
ध्यान तुमारा जो धरता है, इस भवसे वह नर तरता है,
उसको क्षण क्षण खुशीयां होवे, जिस पर कृपा तुमारी होवे. ११
मैं हूं स्वामी दास तुमारा, मेरी नैया कर दो पारा,
नैन चकोर को ‘चंद्र’ बनावें, पद्मप्रभु को शीश नमावें. १२
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