२४ ][ श्री जिनेन्द्र
सित रतन जडित भूषण विचित्र,
सित चंद्र चरण चरचें पवित्र. ६
सित तनद्युति नाकाधीस आप,
सित शिबिका कांधे धरि सुचाप;
सित सुजस सुरेश नरेस सर्व,
सित चित्तमें चिंतत जात पर्व. ७
सित चंद्र नगरतैं निकसि नाथ,
सित वनमें पहुंचे सकल साथ;
सित शिला शिरोमणि स्वच्छ छांह,
सित तप तित धार्यो तुम जिनाह. ८
सित पयको पारण परम सार,
सित चंद्रदत्त दीनो उदार;
सित करमें सो पयधार देत,
मानों बांधत भवसिंधु सेत. ९
मानों सुपुण्य धारा प्रतक्ष,
तित अचरज पन सुर किय ततक्ष;
फिर जाय गहन सित तप करंत,
सित केवल ज्योति जग्यो अनंत. १०
लहि समवसरन रचना महान,
जाके देखत सब पाप हान;