३० ][ श्री जिनेन्द्र
श्री जिनेन्द्र स्तवन
(ओ नाग...! कहीं जा बसियो रे...)
ओ नाथ! अरज टुक सुनियो रे...
निज यश न विसरीयो रे....
दीन दुःखित हो मारा मारा रूला चैन नहीं पाया
लाख चोरासी जनम धारकर, शरणागत अब आया,
प्रभु नजर महरकी करियो रे...निज० १
तुं अलिप्त मैं लिप्त रागमें हूं संसारका वासी
निज स्वरूपमें अविचल तिष्ठुं काट भ्रमनकी फांसी,
भव भार मेरा अब हरियो रे....निज० २
जनम मरनका संकट छूटे मुक्ति महल को पाउं,
जीवनका ‘सौभाग्य’ उदित कर तुजसा मैं बन जाउं,
ये शक्ति सुधा घट भरियो रे...निज० ३
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श्री ´षभजिन स्तवन
(ओ...नाथ! अरज टुक सुनियो रे....)
मैं नाम ॠषभ जिन ध्याउं रे...नित आनंद पाउं रे...
चारों वेद पुराण देख लो षट् दर्शन गुण गावे,
द्वादशांग वाणी शिवदानी शिवकी राह बतावे...
मैं उन संग प्रीत बढाउं रे...नित० १