भजनमाळा ][ ३१
भरतक्षेत्रमें आकर स्वामी ज्योत धरमकी कीनी,
भोले जीवों को जीवन की उत्तम शिक्षा दीनी....
मैं नित प्रति मंगल गाउं रे...नित० २
तीन लोक के देवी-देवता जिनके चरन में आवें,
ॠषि मुनि ज्ञानी जन सब ही जय जय ताल पुकारें...
मैं दर्शन कर हर्षाउं रे...नित० ३
अष्ट सिद्धि नव निधि के दानी पूरण प्रभु उपकारी,
लाखों जीव उगार लिये हैं अब ‘पंकज’की वारी...
भवताप हार शिव पाउं रे...नित० ४
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श्री सीमंधार जिन स्तवन
( मैं कौनसे हृदयसे....प्रभु गुण तेरे गाउं....)
तूं कौनसी नगरी में सीमंधर! है आ...जा
सारे है तेरे भक्त दुःखी दर्श दिखाजा,
तूं कौनसी नगरी में मेरे नाथ! है आ...जा
पुकारें तेरे भक्त प्रभु! दर्श दिखाजा....१
दिल ढूंढ रहा है कि मेरा नाथ कहां है
छोटी सी झलक दे के मेरी धीर बंधा जा....२
भगवान सीमंधर मेरे दिलमें समाकर
आनंद हो जीवन में मेरे दिलमें बसी जा...३