३६ ][ श्री जिनेन्द्र
श्री सीमंधारजिन स्तवन
मेरे द्रगमें...हां...हां...मेरे दिलमें,
बसी मूरत तेरी...चित्त लुभाये....
तार तार तेरी धून बाजे
उर वीणा गूंजाये....
भजले भजले यह गाती है
यह धून मेरे मन भाती है,
पास तेरे चरणोंमें बैठा
लौ तेरे से लगाये...मेरे....(१)
तूने क्या जादू फैलाया
अंखियन में ऐसा है समाया,
निरखत निरखत सदा रहूं पर
हटती नहीं हटाये...मेरे...(२)
कठिन यत्नसे जो कोई पाये
कैसे भला उसे विसराये,
निश्चय ‘वृद्धि’ को है तूंही
भवसे पार लगाये...मेरे...(३)
कृपाद्रष्टि ओ सीमंधर जिनजी!
हम पर निशदिन बरसे तेरी,
अम अंतरमें वास तेरा है,
तुझसे हम बन जायें...मेरे...(४)
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