भजनमाळा ][ ३९
श्री विदेहीजिन स्तवन
सिंधु ये अपार है नैया मझधार है
तूं ही मेरा मांझी प्रभु! तूंही पतवार है...
विदेही भगवान तूं जीवन का आधार है,
तूं ही वीतराग प्रभु! तूं ही मेरा देव है.
राग – द्वेष में फंसकर स्वामी तेरा नाम भुलाया,
भव भवमें भटक भटकके, अब तो दरशन पाया....(१)
जीवन नैया हुई जर्जरी अब ले नाथ उगारी,
साधक के तुम साथी होकर देते हिंमत सारी....(२)
तेरा नाम सहारा पाकर लाखों पार लगे हैं,
मेरा भी सौभाग्य सफल हो, श्रद्धा दीप जगे हैं....(३)
✽
श्री नेमिनाथ स्तवन
कहे राजुलदे नार...जरा मेरी भी पुकार...
सुनो....सुनो भरतार....
— जाते हो कहां रथ मोडके....रथ मोडके
ओ! मांझी मुझे अध बीचमें
कहो कैसे तजी जग...कीचमें?