४४ ][ श्री जिनेन्द्र
(३) तोड्या कांकण डोरडा (ने) तोड्या नवसर हार,
सहसावनमें जाय सांवरिया लीनो संजमधार...हमारो प्रभु.
(४) मुझे छांडि प्रभु मुक्ति सिधारे आवागमन निवार,
चंद कपूरा विनवे चरण शरण आधार...हमारे प्रभु.
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श्री जिनेन्द्र भजन
थांकी उत्तम क्षमापै जी...अचंभो म्हाने आवे....(२)
किस विध कीने करम चकचूर....थांकी उत्तम क्षमा पै.
[१] एक तो प्रभु तुम परम दिगंबर
पास न तिल तुस मात्र हजूर,
दूजे जीव दयाके सागर
तीजे संतोषी भरपूर...किसविध.
[२] चौथे प्रभु तुम हित उपदेशी
तारण तरण जगत भासूर,
कोमल वचन सरल सत वक्ता
निर्लोभी संयम तपसूर...किसविध.
[३] कैसे ज्ञानावरणी जि नास्यो
कैसे गेर्यो अदर्शन चूर,
कैसे मोहमल्ल तुम जीत्यो
कैसे किये च्यारुं घातिया दूर....किसविध.